क्या पता छूटेगी कब
बरसोंकी यह आदत मेरी
साँस लेने की गुज़ारीश
दिल में हैं हर पल मेरी
बोलना चाहा ज़ुबांने
थम गयी धड़कन मेरी
होठ से लिपटी हैं जो
वह बात हैं ख्वाहीश मेरी
क़दमों की आहट सून के मेरे
ना छूपा कर तू कभी
सामने आ तू ज़रा
सुन ले ज़रा दस्तक मेरी
भीग भी जाए, तो क्या हैं गम
हैं क्या अफ़सोस क्या
भीगने के ही लिए तो
आज हैं बारीश मेरी
कोशिशे की लाख,
ख्वाबोंको भी न्योता दे दिया,
पर रात भी ना सो सकी
यूँ छीन कर नींदें मेरी