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Thursday, 20 October 2011

आदत

क्या पता छूटेगी कब 
बरसोंकी यह आदत मेरी 
साँस लेने की गुज़ारीश
दिल में हैं हर पल मेरी 

बोलना चाहा ज़ुबांने
थम गयी धड़कन मेरी 
होठ से लिपटी हैं जो 
वह बात हैं ख्वाहीश मेरी 

क़दमों की आहट सून के मेरे
ना छूपा कर तू कभी 
सामने आ तू ज़रा 
सुन ले ज़रा दस्तक मेरी 

भीग भी जाए, तो क्या हैं गम 
हैं क्या अफ़सोस क्या 
भीगने के ही लिए तो 
आज हैं बारीश मेरी 

कोशिशे की लाख,
ख्वाबोंको भी न्योता दे दिया,
पर रात भी ना सो सकी 
यूँ छीन कर नींदें मेरी 



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