कहतें भी तो कैसे
जनाब-ए-हाल गुमसुम था
कहना रहा बाकी, के बस-
"कहना था शुक्रिया"
बातें हुई हवा से
यूँ ही इधर-उधर की
बारिश के लौटने का
आस़ार भी न था
आवाज़ हर किसम की
मौजूद थी वहाँ पर
माना किसी में उनके
जैसा मज़ा न था
वक़्त से कहते रहें
रुकना ज़रा इस मोड़ पर
वह अनसुनी कर चल दिया
कहने लगा मजबूर था
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